क्या नाम दू मैं इस रिश्ते को ,
काफी सोचा मैंने काफी समझा भी ...
लगता है कोई अनजानी सी डोर है ,
कुछ दुरी है तो कुछ मज़बूरी भी ....
ख्याल भी झहन मे रहता है ,
ख़ुशी भी देता है तो कभी गम भी,....
कुछ खास होने का एहसास भी होता है ,
तो कभी दुरी का एहसास भी....
क्या सुनाऊ मैं अब इससे जय्दा ,
अभी काफी कुछ कहना है तो सुनना भी ...
मेरे शब्द कम है और ये रात लम्बी ...
सच कहू कुछ शब्द कहे है तो कुछ अनकहे भी....